Monday, May 17, 2010

मन का शुद्ध भाव कान्हा है


कान्हा कान्हा कान्हा कान्हा
कान्हा अन्दर बाहर कान्हा
बोले कान्हा सुनता कान्हा
सांस सांस में गाये कान्हा

तन्मयता से देख जरा तो
मैं भी कान्हा तू भी कान्हा
खेल करे है तरह तरह के
मेरा प्रियतम प्यारा कान्हा

ध्यान संभाले ना संभाले जब
मक्खन हाथ चटाये कान्हा

गोवर्धनधारी है अद्भुत
हर संकट छुडवाये कान्हा
कभी अग्नि का पान करे है
कभी मगन मुस्काये कान्हा

मन का शुद्ध भाव कान्हा है
खेल करे, छुप जाए कान्हा

११ अक्टूबर २००५ को लिखी
१७ मई २०१० को लोकार्पित

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