जीवन, यौवन, दान, तप
सब कान्हा के नाम
सांस प्रेम रस, रंग के
चलूँ श्याम के धाम
प्रेम प्ररखने आ गयी
लीलावती सुजान
कहे प्राण तज कर बता
कहाँ श्याम स्थान
कहे बावरी गोपिका
तज कर सब अभिमान
तजने को कुछ भी नहीं
मेरे प्राण, श्याम के प्राण
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ अगस्त ०५ को लिखी
बुधवार, ५ मई 2010
1 comment:
अति सुन्दर,
तजने को कुछ भी नहीं, मेरे प्राण, श्याम के प्राण
बार बार तू कहता मुझसे, जग की सेवा कर तू मन से।
इसी में मैं हूं, सभी में मैं हूं, तू देखे तो सब कुछ मैं हूं॥
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