मन मोहन संग जा बसूं
प्रेम शरण पतवार
कृपा करे कान्हा चले
नाव नदी के पार
ज्योतिर्मय मुस्कान प्रभु की
हर्षित है जग सारा
श्याम शरण से जागा
साँसों में उजियारा
कृष्ण नाम को थाम कर
पार करूं भव बंधन
मेरे मन के सारथि
कृपा नाथ यदुनंदन
प्रेम अमर जब पा लिया
फिर कैसा संताप
सहज हो रहा सांस में
श्याम नाम का जाप
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९, २२ और २४ सितम्बर २००५ को लिखी
११ मई २०१० को संशोधन सहित लोकार्पित
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