Tuesday, May 4, 2010

महक रहा री वृन्दावन


जाग्रत मन
कान्हा सुमिरन
अक्षय धन
अनुपम अपनापन

प्रेम प्रसार मधुर मनभावन
सुमिरन सौरभ लिए पवन
सकल सृष्टि का सार छुपाये
महक रहा री वृन्दावन

अशोक व्यास
२५ अगस्त ०५ को लिखी 
४ मई २०१० को लोकार्पित

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