Saturday, May 22, 2010

केशव तुम नित्य निरंतर हो



लो साथ सभी सखियाँ
फिर से
मोहन की लीला सजा रही
एक सखी 
उठाये गोवर्धन
एक सखी बांसुरी बजा रही

केशव तुम नित्य निरंतर हो
कभी रसिया, कभी योगेश्वर हो
हे नाथ शरण अपनी देना
तव महिमा नित्य उजागर हो


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ अक्टूबर २००५ को लिखी
२२ मई २०१० को लोकार्पित

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