वृन्दावन का कण- कण कान्हा
मेरा तो है तन मन कान्हा
घुटनों के बल चले मधुर वह
पायल पहने छन छन कान्हा
ज्योतिर्मय शोभा अति प्यारी
करूण कृपामय कानन कान्हा
एक मुस्कान लुटाये सब कुछ
वैभव परम, चरम धम कान्हा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० अक्टूबर २००५ को लिखी
२१ मई २०१० को लोकार्पित
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