Sunday, May 16, 2010

लीलारस बरसा कर


सांस सांस सुरभित सुन्दरतम
कान्हा की लीला संग हर दम
गोविन्द गुण गा शांत सखा मन
अमृत पथ पर साथ चलें हम 




कान्हा कान्हा कान्हा, मेरे मन बस जा
रोम रोम से गाऊँ तेरी मधुर कथा

लीलारस बरसा कर प्यारा अमृत सा
सुमिरन रस से हरते मेरी सकल व्यथा


अशोक व्यास
६ -७ अक्टूबर २००५ को लिखी 
१६ मई २०१० को लोकार्पित

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