Sunday, May 2, 2010

प्रेम नृत्य है सांस में


कृष्ण प्रेम की लौ लगी
सब कल्मष हुए शेष
परमानन्द प्रकाश से 
भस्म हुए दुःख क्लेश

श्याम हो गया पाहुना
घर है स्वर्ग सामान
प्रेम नृत्य है सांस में
कण कण ज्योति सनान

करूं बडाई श्याम की
दीप दरस आदित्य
शब्द सुमन उसको धरूं
जिससे सब साहित्य

बजा प्रेम डंका, सुने, 
बिरला मनुज सुजान
अमृत स्वर के श्रवण को
कर्ण बने खुद ध्यान

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० अगस्त २००५ को लिखी
२ मई २०१० को लोकार्पित

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