मन मस्ती कान्हा से लेकर
तू आनंद, निर्मल शीतल पा
रे मन तज कर संकल्प सभी
तू चिर विराट का आँचल पा
उमड़े है हर्ष अपार अहा
तू सकल सृष्टि का मंगल गा
जिस नाम अभय और स्थिरता
वह श्याम नाम तू प्रतिपल गा
केशव के चरणों की रज से
वृन्दावन सा हर स्थल पा
कर पार सभी बाधा हँस कर
तू मनमोहन से संबल पा
ले प्रेम सांवरे गिरिधर का
पहचान, दिव्य है चंचलता
हर गति गहन गोपाल लाल
यह ध्यान, छुडावे व्याकुलता
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० अगस्त २००७ को लिखी
२७ मई २०१० को लोकार्पित
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