रे मन बारम्बार रट
कान्हा का प्रिय नाम
अमृत सागर रम सदा
कृष्णमयी अविराम
जीवन पथ है सांकरा
छोटे छोटे लोग
बिना प्रभु के मान के
राख सभी संयोग
ढोल बजा कर नाचता
जाए मस्त फ़कीर
अपनी झोली ले चले
सब महलों की पीर
भक्ति का वरदान ले
पाया सब संसार
सांस सांस पुलकन जगे
बाजे सुमिरन तार
उसकी हाथों में धरे
यश -अपयश, हर बात
हर अनुभव मिलता रहे
वही मुझे दिन-रात
ओ रे लाला नन्द के
बंशी वाले चितचोर
बिसरा कर तुमको चलूँ
कभी ना हो वह भोर
मक्खन की नदिया बहे
कान्हा की मुस्कान
दरस किये करता राहे
मन आनंदित स्नान
ब्रज की रेती में मिले
कान्हा का संगीत
घुल जाऊं हर उस जगह
जहां मेरा मनमीत
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ मार्च १९९५ में लिखे
४ सितम्बर २०१० को लोकार्पित
अशोक व्यास
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