Wednesday, September 15, 2010

मोहन की लीला मधुर



कान्हा की मुस्कान है
और भक्ति की खान
समृद्धि अतुलित मिली
जान सके तो जान

आनंद सुरभि तज दई
धरा विकट सा स्वांग
इच्छा अग्नि जल रहे
बढ़ा मांग पर मांग

मोहन की लीला मधुर
रसमय दिव्य महान
बडभागी है वह मनुज 
जो करे दिव्य रसपान

अशोक व्यास
५ जनवरी २००७ को लिखी 
१५ सितम्बर २०१० को लोकार्पित

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