कान्हा की मुस्कान है
और भक्ति की खान
समृद्धि अतुलित मिली
जान सके तो जान
आनंद सुरभि तज दई
धरा विकट सा स्वांग
इच्छा अग्नि जल रहे
बढ़ा मांग पर मांग
मोहन की लीला मधुर
रसमय दिव्य महान
बडभागी है वह मनुज
जो करे दिव्य रसपान
अशोक व्यास
५ जनवरी २००७ को लिखी
१५ सितम्बर २०१० को लोकार्पित
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