मन मगन प्रेम मनमोहन का
उतरे आँगन आनंद परम
यह प्रीत मेरे नटनागर की
धन अनुपम, पावन और उत्तम
चल श्याम सखा का मुख निरखें
देखे नदिया सागर संगम
वह क्रीडामय मेरे गिरिधारी
जग देखें उसके होकर हम
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ जून २००७ को लिखी
५ सितम्बर २०१० को लोकार्पित
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