Sunday, September 5, 2010

मन मगन प्रेम मनमोहन का

 
मन मगन प्रेम मनमोहन का
उतरे आँगन आनंद परम 

यह प्रीत मेरे नटनागर की
धन अनुपम, पावन और उत्तम
 
चल श्याम सखा का मुख निरखें 
देखे नदिया सागर संगम

वह क्रीडामय मेरे गिरिधारी
जग देखें उसके होकर हम 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ जून २००७ को लिखी 
५ सितम्बर २०१० को लोकार्पित


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