Friday, September 10, 2010

मुक्ति पथ दिखलाओ

 
 
अपनी असमर्थता लिखने में भी
प्रमाद है
सत्य में ईश्वर है तो फिर कैसा
अवसाद है
सबसे पहले वही है जो
सबके बाद है
सच्छा सुख देने वाली
शाश्वत की याद है

जिसकी स्मृति से आल्हाद है
जिससे हर बस्ती आबाद है
उसी नंदनंदन को
आज ये नई फ़रियाद है

मुक्ति पथ दिखलाओ, बंधन से छुडाओ
समर्पण हो निरंतर, ऐसा पाठ पढ़ाओ
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
१० अप्रैल २००७ को लिखी
१० सितम्बर २०१० को लोकार्पित

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