अपनी असमर्थता लिखने में भी
प्रमाद है
सत्य में ईश्वर है तो फिर कैसा
अवसाद है
सबसे पहले वही है जो
सबके बाद है
सच्छा सुख देने वाली
शाश्वत की याद है
जिसकी स्मृति से आल्हाद है
जिससे हर बस्ती आबाद है
उसी नंदनंदन को
आज ये नई फ़रियाद है
मुक्ति पथ दिखलाओ, बंधन से छुडाओ
समर्पण हो निरंतर, ऐसा पाठ पढ़ाओ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० अप्रैल २००७ को लिखी
१० सितम्बर २०१० को लोकार्पित
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