Tuesday, September 14, 2010

कृष्ण कृपा की डोर

 
 
मन है चंचल
घनश्याम शरण बिन
भटके चहुँ दिस ओर,
 
कभी साथ ले चले 
किसी घटना का 
कोई छोर,
 
इसे शांत तल तक 
ले जाए
कृष्ण कृपा की डोर, 

करो कृपा, केशव
ना बीते
तव सुमिरन की भोर

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ अप्रैल २०१० को लिखी
१४ सितम्बर २०१० को लोकार्पित

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