Thursday, September 30, 2010

निर्मल आलोक

 
श्री कृष्ण उवाच 
"ताल नई
जब चरण जगाये
थाप करें भू पर आनंदित

उसके स्वर में
तन्मय हो तुम
बनो गीत ऐसा
जो मेरी बंशी गाये
वह निर्मल आलोक बनो तुम
जिसको मुखरित कर
निज आनंद बढे नित मेरा"
 
 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका 
३० जून ०४ को लिखी
३० सितम्बर २०१० को लोकार्पित

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