बतला मुझको यसुमति
उस रस्सी का नाम
उर उखल जिससे कभी
बाँध सकूं घनश्याम
कृष्ण रची गोयें नयी
कृष्ण रचे नव-ग्वाल
लीला प्रभु व्रजराज की
रोक सके ना काल
श्याम तिहारे दरस की
प्यास सांस की आस
दिखे बिना ही सांवरा
रचा रहा है रास
सुमिरन पवन सुना रही
वृन्दावन संगीत
गायें, आ मिल कर सखी
हम कान्हा के गीत
अशोक व्यास
न्यूयार्क
जुलाई ९, ९४ को लिखी
१९ सितम्बर २०१० को लोकार्पित
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