Tuesday, September 21, 2010

'करो अर्पित तन-मन'

 
कान्हा मुख मंडल
मौन सघन
ज्यूं ठहर गया
कोई चिंतन

धीरे-2 मुस्कान रश्मियाँ
प्रकट भई
 
मैंने पूछा 
कुछ कहो सजन
कान्हा ने बिना अधर खोले
ये कहा
'करो अर्पित तन-मन'
 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ अप्रैल २००७ को लिखी
२१ सितम्बर २०१० को लोकार्पित

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