मन वृन्दावन, आनंद सुमन
मुस्कान अधर धर नन्द नंदन
हर्षित गैय्या, पुलकित ब्रजजन
शाश्वत मस्ती, ब्रजराज शरण
मन झूमे, नाचे, गान जगे
हर धड़कन मुरली तान सजे
लो कृपा मनोहर हँसे मधुर
ज्यूं रोम-रोम में आन बसे
मन वृन्दावन, आनंद सुमन
आल्हाद अहा! बांकी चितवन
निर्मल, शीतल, सुन्दर उज्जवल
मेरे सखा, स्वयं गिरिराज धारण
जय हो, जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ जून २००७ को लिखी
६ सितम्बर २०१० को लोकार्पित
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