मन मगन प्रेम मनमोहन का
उतरे आँगन आनंद परम
यह प्रीत मेरे नटनागर की
धन अनुपम, पावन और उत्तम
चल श्याम सखा का मुख देखें
देखें नदिया सागर संगम
वह क्रीडामय, मेरा गिरिधारी
देखें जग उसके होकर हम
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ जून २००७ को लिखी
१७ सितम्बर २०१० को लोकार्पित
1 comment:
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...सुन्दर प्रस्तुति...बधाई.
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'शब्द-शिखर' : एक वृक्ष देता है 15.70 लाख के बराबर सम्पदा.
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