Wednesday, June 2, 2010

बहती है आनंद धार सी


मनमोहन मन आन बसों अब 
अब तो सीमा को दूर करो सब 
चले गए हो, जान लिया है
ना जाने, फिर आओगे कब 
तुम केशव हो, तुमसे सृष्टि
बिन सुमिरन, रसहीन लगे सब

बहती है आनंद धार सी
छवि तुम्हारी दिखती जब जब

ओ गोपाला, मुरलीधर ओ
तव चरण शरण, संसार सार सब


अशोक व्यास
६ सितम्बर ०७ को लिखी
२ जून २०१० को लोकार्पित

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