मनमोहन मन आन बसों अब
अब तो सीमा को दूर करो सब
चले गए हो, जान लिया है
ना जाने, फिर आओगे कब
तुम केशव हो, तुमसे सृष्टि
बिन सुमिरन, रसहीन लगे सब
बहती है आनंद धार सी
छवि तुम्हारी दिखती जब जब
ओ गोपाला, मुरलीधर ओ
तव चरण शरण, संसार सार सब
अशोक व्यास
६ सितम्बर ०७ को लिखी
२ जून २०१० को लोकार्पित
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