छोड़ी पटरी, भटका मन
झाड़ कंटीले, उलझा मन
बहुत थका, व्याकुल व्याकुल
नहीं कहीं बेखटका मन
चिपका लिया अधूरापन
लगा डराने तब दर्पण
खोई ठौर ठहरने की
भागा दिशाहीन जब मन
चमक गयी जब शब्दों से
जंगल सा था तब आँगन
मिला रास्ता जीने का
कान्हा जब लाये माखन
फिर से मालामाल हुआ
पाकर गीतामृत का धन
अशोक व्यास
१७ नवम्बर २००७ को लिखी
१९ जून २०१० को लोकार्पित
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