भज मन प्रेम प्रवाह अनवरत
मनमोहन सुमिरन का ले व्रत
ज्योति जगा ले
दिव्य दरस की
अपना ले नित ज्योतिर्मय पथ
सांस सांस जिससे नित आये
पग-पग गुण जब उसके गाये
सहज कृपा रस वह बरसाए
उसको ध्याये, उसको पाए
सारी सृष्टि, उसकी सूरत
भज मन प्रेम प्रवाह अनवरत
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० अक्टूबर २००७ को लिखी
१४ जून २०१० को लोकार्पित
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