Monday, June 14, 2010

भज मन प्रेम प्रवाह अनवरत


भज मन प्रेम प्रवाह अनवरत
मनमोहन सुमिरन का ले व्रत

ज्योति जगा ले
                      दिव्य दरस की
अपना ले नित ज्योतिर्मय पथ 
सांस सांस जिससे नित आये
पग-पग गुण जब उसके गाये
सहज कृपा रस वह बरसाए
उसको ध्याये, उसको पाए

सारी सृष्टि, उसकी सूरत
भज मन प्रेम प्रवाह अनवरत 

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३० अक्टूबर २००७ को लिखी
१४ जून २०१० को लोकार्पित

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