Thursday, June 3, 2010

शरण सत्य है


मंदिर मन में बना श्याम का घूमा सकल बाज़ार
सतत संग सुन्दर अनुभूति श्याममयी संसार

दिव्य सुधारस पान कराया गुरु ने ऐसा
सब कुछ हुआ विशेष, नहीं कुछ ऐसा वैसा

योगेश्वर का नाम मिटाए है भव बंधन 
शीतल, सुरभित मन करता भक्ति का चन्दन

शरण सत्य है जान ले, ओ मुरख नादान
बिना ब्रह्म सम्बन्ध के, गुड भी फीका जान

अशोक व्यास
७ सितम्बर ०७ को लिखी
३ जून २०१० को लोकार्पित

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