मन ठाकुर चरणारविन्द आश्रय पायो
भयो मगन, निर्मल होकर अति हर्षायो
ले तान अलौकिक आनंद की
यसुमती सुत मोसे बतियायो
तब, भूख प्यास बिसरी सारी
लीला करने शाश्वत आयो
जो कहूं, बावरी लगूँ, लगूँ तो लगूँ
ले सुन, मोको कान्हा ने अपनायो
मन वीणा, वाध्य, मृदंग धरा
छुप छुप आयो, खुल कर गायो
मन शीतल, चन्दन, लेप सरस
झूमे वह, रोम रोम, हँस हँस
जो शुद्ध सनातन, सुन्दरतम
बन श्याम करे मन से संगम
अचरज आयो
मन हर्षायो
मत कह्यो किसी से
पर तू सुन
उसकी कोई थाह नहीं पायो
पर वही प्रेम वंशी लेकर
उर में आयो, मन हर्षायो
ले इतनी बात कही मैं ने
पर वह ना कही, जो बात हुई
जो बात ना सुनने कहने की
जो बात शरण में रहने की
जो बात ना कोई, कह पायो
जो कृपा कर्ण से सज्जित है
वही सुन पायो
उसने गायो
मन हर्षायो
सब कुछ पायो
मन हर्षायो
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
अक्टूबर २०, २००७ को लिखी
११ जून २०१० को लोकार्पित
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