Sunday, June 6, 2010

मौज निरंतर


अमृत पथ दिखलाए कान्हा
आनंद रस बरसाए कान्हा
कृपा श्याम की अद्भुत अनुपम
प्रेम छाँव अपनाए कान्हा

परम प्रेम आनंद प्रवाह
कृष्ण कृपा की कोई ना थाह
शरण श्याम ही जीवन धन है
मौज निरंतर, वाह भई वाह!


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ एवं ३० सितम्बर २००७ को लिखी
६ जून २०१० को लोकार्पित

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