सच बोले कान्हा कभी
ऐसा दिन ना आये
मोहे तो ओ री सखी
छल कान्हा का भाये
कभी दरस दे सांवरा
कभी, कहीं छुप जाए
बात बताये बात बिन
छेड़ करे, मुस्काये
वो अब क्या बोलूँ इसे
जुडा नहीं कुछा नाता
फिर भी मन ऐसा हुआ
बस कान्हा कान्हा गाता
चुरा लिया सब ध्यान तो
अब मिलने ना आये
जित जाए है सांवरा
मन मेरा उत जाए
कहा निशानी दे कोई
हंसा बांसुरी वाला
बंशी से बेसुध किया
छोड़ गया मतवाला
क्या उसकी महिमा कहूं
किसे सुनाऊँ बैन
मौन आनंदित कर रहे
नित कहाँ के नैन
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ जून २०१०, रविवार को लोकार्पित किये गए ये शब्द
कान्हा की कृपा से उतरे अप्रैल २६, २००४ को
No comments:
Post a Comment