Monday, June 7, 2010

देह छोड़ जाने से पहले


अर्थ बताओ
अर्थ दिलाओ
कृष्ण! सखा हो
मुझे जताओ

अपनेपन का बोध जगाओ 
रसमय सुमिरन तान सधाओ
बहुत अकेला भटक लिया हूँ
अब आ जाओ, ना तरसाओ

जीवन मेरा बीत रहा है
जो कुछ है, सब रीत रहा है
अब तक जान नहीं पाया हूँ
क्या साँसों में गीत रहा है

जीवन शेष नहीं होता पर
देह छोड़ जाने से पहले
पावन पथ पर बढ़ते बढ़ते
उन्नत होना मुझे सिखाओ


मौन मधुर आया जब भीतर
रोम रोम में कान्हा का स्वर
यह उल्लास अद्वितीय उजागर
झूमूं मैं विराट धुन गाकर

अशोक व्यास
७ अक्टूबर ०७ को लिखी
७ जून २०१० को लोकार्पित

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