Saturday, June 26, 2010

मौन है सुन्दर, कृपा नगर है




मौन है सुन्दर
कृपा नगर है
सांस श्याम संग
आठ पहर है
गोविन्द गुण की
प्रेम लहर है

सब जागे है
ले उजियारा
पथ प्रदीप्त है
पावन प्यारा

दिव्य धरा है
चिद अम्बर है
क्षण क्षण शाश्वत
सतत मुखर है

अमृत घट
लाये हैं गुरुवर
प्यासा हूँ
पीना है छककर

गुरु दृष्टि से पीने वाला
हो जाता ऐसा मतवाला

पग-पग प्रकटित दिव्य डगर है
अतुलित वैभव वाला घर है

मौन है सुन्दर, कृपा नगर है
सांस श्याम सुमिरन से तर है

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२५ अप्रैल २००४ को लिखी
२६ जून २०१० को लोकार्पित

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