मन में यदि मनमोहन का नित्य निवास करवाऊं
तो मन में धरे संस्कारों को कहाँ बहाऊँ
कैसे अपनी स्मृतियों और सपनो से
पीछा छुडाऊँ
कहीं ऐसा तो ना होगा, मैं त्रिशंकू
की तरह लटक जाऊं
कान्हा ने हँस कर आश्वासन दिया
"जब मैं आऊँगा
अपने साथ समन्वय, शांति, समृद्धि, प्रेम, आनंद
सब साथ लाऊंगा
तोड़ दो बारीक सा यह मैं का तार
अपना लो, यह सारा विस्तार
एक कड़ी भरोसे की रख कर
आगे आ जाओ
पहले खो दो स्वयं को
फिर मुझे पाओ
इस संशय, ऊहापोह में
जन्म व्यर्थ ना गंवाओ
अपने आत्म-वैभव का गान
दूर दूर तक पहुँचाओ"
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
९ अप्रैल २०१० को लिखी कविता का अंशा
१६ सितम्बर २०१० को लोकार्पित
1 comment:
तोड़ दो बारीक सा यह मैं का तार
अपना लो, यह सारा विस्तार
एक कड़ी भरोसे की रख कर
आगे आ जाओ
पहले खो दो स्वयं को
फिर मुझे पाओ
बहुत अच्छी पंक्तियां....अच्छा लगा पढ़कर
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