Monday, April 11, 2011

गलती मेरी थी



कान्हा से मिले बहुत दिन हो गए
दोनों सखा पगडंडी पर
खड़े खड़े
एक दुसरे से बतिया रहे थे
एक ने कहा
'हाँ, अभी उस दिन
मैंने उसको मेरी गेंद गुमा देने पर
डांट दिया था
फिर वो खेलने ही नहीं आया'
दूसरा बोला
'तुम्हें ऐसे नहीं
कहना चाहिए था
उसका मन बड़ा कोमल है'
'हाँ, गलती हो गयी'
पहला रूआंसा हो गया
'अबकी कान्हा आएगा 
तो मैं उससे अपनी गेंद के लिए
कभी लडूंगा ही नहीं'
न जाने कैसे कान्हा
पेड़ के पीछे से प्रकट हो गया
मुस्कुराते हुए बोला
'तुम जिस गेंद के लिए
लड़ने लगे थे
वो गेंद तो तुम्हारी थी ही नहीं
तुम्हारी कोई गलती नहीं
गलती मेरी थी की
मैंने तुम्हे बताया नहीं 
की जिस गेंद को तुम अपना मान रहे हो
वो तुम्हारी नहीं मेरी है '


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ अप्रैल ११  
    

No comments: