कान्हा के दरबार चला आया कान्हा
मुझको लेकर साथ चला आया कान्हा
मुझे लगा, है दूर, नहीं सुन पायेगा
मगर सुना, जब-जब मैंने गाया कान्हा
मांगो की सूची तो पहले जैसी थी
मुस्का कर इस बार खिलखिलाया कान्हा
जीवन मेरा सफल लगा उस दिन मुझको
जिस दिन सबसे अधिक मुझे भाया कान्हा
अशोक व्यास
९ अक्टूबर २००६ को लिखी
१६ अप्रैल २०११ को लोकार्पित
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