Monday, April 18, 2011

साँसों में सपने उजियारे


मन आनंद अपार उतारे
कान्हा के जयकार पुकारे
जिससे कण कण दीप्त निरंतर
हमको रहना उसी सहारे

साँसों में सपने उजियारे
पहुँच गए कान्हा के द्वारे
मौन मगन मनमोहन की धुन
इसे छोड़ मन कहीं ना जा रे


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० अक्टूबर २००६ को लिखी
१८ अप्रैल २०११ को लोकार्पित           

No comments: