मन आनंद अपार उतारे
कान्हा के जयकार पुकारे
जिससे कण कण दीप्त निरंतर
हमको रहना उसी सहारे
साँसों में सपने उजियारे
पहुँच गए कान्हा के द्वारे
मौन मगन मनमोहन की धुन
इसे छोड़ मन कहीं ना जा रे
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० अक्टूबर २००६ को लिखी
१८ अप्रैल २०११ को लोकार्पित
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