श्याम सुन्दर की जय जय बोलो
अपने सब अवगुंठन खोलो
अमृत बदरी छुपी हुई जो
उसे बुला कर उसके हो लो
कान्हा की हर बात निराली
माखन मटकी कर कर खाली
खुद खावे, सब सखा खिलावे
हंस हंस ले गोपियाँ की गाली
कृष्ण मुरारी पर सब वारि
साँसों की यह दौलत सारी
उससे हर क्षण, उससे कण कण
मेरा सब कुछ, बस बनवारी
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
२६ जुलाई १९९७ को लिखी थीं मुम्बई में
२४ अप्रैल २०११ को न्यूयार्क से लोकार्पित
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