Sunday, April 24, 2011

अपने सब अवगुंठन खोलो



श्याम सुन्दर की जय जय बोलो
अपने सब अवगुंठन खोलो
अमृत बदरी छुपी हुई जो
उसे बुला कर उसके हो लो

कान्हा की हर बात निराली
माखन मटकी कर कर खाली
खुद खावे, सब सखा खिलावे
हंस हंस ले गोपियाँ की गाली

कृष्ण मुरारी पर सब वारि
साँसों की यह दौलत सारी
उससे हर क्षण, उससे कण कण
मेरा सब कुछ, बस बनवारी

जय श्री कृष्ण

अशोक व्यास

२६ जुलाई १९९७ को लिखी थीं मुम्बई में
२४ अप्रैल २०११ को न्यूयार्क से लोकार्पित

           

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