Friday, April 29, 2011

ठहर ! देख हर लहर! लौटती है आकर


ठहर
देख हर लहर
लौटती है आकर
चली
जहाँ से, वहीं
मिल रही है जाकर

सुबह शाम हो या हो रात
सुना रही सागर की बात

है विशाल 
पर तेरी गोद में
रखना चाहे, सिर आकर

खेल प्रेम के खेल निरंतर
 खुशी से इसको अपना कर

अपनाने का खेल खेल ले
सुख-सुख हंस हंस सभी झेल ले

छोड़  न सीमा
सब कुछ खोकर
या अनमोल रतन पाकर
ठहर
देख हर लहर
लौटती है आकर

            अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ अप्रैल २०११    

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