कान्हा से अधिक गोपियों के प्रति आभार
जिनके कारण सुलभ हुआ कान्हा का प्यार
जिनके भीतर कभी न रही 'मैं' की दीवार
जिन्होंने पूर्णता से पूर्ण को कर लिया स्वीकार
कान्हा के पास तो फिर भी चंचलता है
गोपियों के पास तो बस कान्हा झलकता है
कान्हा भी कमाल है
स्वयं से अधिक
गोपियों के पास
कैसे रह जाता है
या शायद
गोपियाँ हैं ही नहीं
कान्हा ही इस रूप में
स्वयं को रिझाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२२ अप्रैल २०११
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