Wednesday, April 27, 2011

मन मंगल मंगल श्याम हरि



मन मंगल मंगल श्याम हरि
आनंद धार अविराम हरि
चल कृपा गगन की छाँव लिए
कर काज सकल मन थाम हरि


मन अनुपम आनंद बरस बरस
गहराए पल पल सुमिरन रस
मैं देखूं कहाँ मधुसूदन है
वो देखे मुझको हंस हंस हंस


अशोक व्यास
नवम्बर २४ और २५, २००९ को लिखी
२७ अप्रैल २०११ को लोकार्पित    

1 comment:

sunil purohit said...

प्रभु संग खेल रहे हो
बिताए क्षण लिए जी रहे हो
खेलना तुम छोड़ोगे नहीं
अभी तो हम सिर्फ आतुर हैं
हम होंगे जब व्याकुल तुम ज्यों
खेलेंगे तब प्रभु संग हम दोनों