Tuesday, March 2, 2010

81 प्रेम नदी में स्नान

कृष्ण धाम चल री सखी
वहां मिलेंगे श्याम
व्याकुल नयनों को सखी
वहीं मिले विश्राम

केशव कर मुरली सजे
मुरली स्वर हैं प्राण
बडभागी है वह मनुज
जिसे कृष्ण का ध्यान

मौन तोड़ कर बोलते वृक्ष
पवन संग आज
बजा किसी के ह्रदय में
कृष्ण प्रेम का साज

चित्त चंचल, शीतल हुआ
प्रेम नदी में स्नान
मधुर करें हर एक क्षण
मेरे कृष्ण भगवान्


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१६ फरवरी ०५ को लिखित
२ मार्च २०१० को लोकार्पित

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