कान्हा कान्हा कर सखी
मन में आये चैन
आँख खोल जब ना दिखे
बंद कर लिए नैन
कान्हा नित ह्रदय बसे
सखी ऐसा गुर सिखलाये
कहना सुनना छोड़ कर
नित गोविन्द गोविन्द गाये
मेरे भीतर नित्य है
जीवन का आधार
साथ उसी के खेल कर
सांस करे श्रृंगार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२१ फरवरी ०५ को लिखी
६ मार्च २०१० को लोकार्पित
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