खेल कर्म के खेल तू
बोले कृष्ण सुजान
करूं समन्वित जग सकल
रख बस मुझ पर ध्यान
आये जाए प्रेम से
हर घटना की छाप
रटूं रात-दिन नेम से
कृष्ण नाम का जाप
चल अपना बिस्तर उठा
कहे सूर्य का ताप
भज उसको, जिससे मिटे
दुःख-शोक, संताप
बिरह बाण घायल नहीं
मन हो गया निरोग
श्याम मिलन की प्यास भी
बड़ा विलक्षण योग
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ मई २००५ को लिखी
३० मार्च २०१० को लोकार्पित
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