कृष्ण प्रेम के आसरे
पार करूं जंजाल
हर एक ताल से मधुर है
कृष्ण प्रेम की ताल
भक्ति दुर्लभ है सखी
दुर्लभ कृष्ण का नाम
वो तो नित बैकुंठ है
जो लेवे अविराम
प्रेम आनंद घनश्याम है
श्याम प्रचुर अवकाश
धीरज धर स्थान दे
हर अनुभव को आकाश
कृपा रूप हर बात है
इसी भाव को थाम
मन में जब कृतकृत्यता
हर एक बात है श्याम
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
अप्रैल ३०, 2010
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