कर्म रूप में श्यामजी
दीखते कैसे आप
मन को छलता जाए है
क्रियायुक्त आलाप
श्याम रूप संग में सखी
कैसे रहे, बता
काम-काज में जब लागून
भूलूँ, श्याम पता
मनमोहन की बांसुरी
और प्रेम की प्यास
जंगल आ बैठी सखी
साथ लिए विश्वास
वो कब आये इस डगर
सोच सोच कई बार
अब सब उस पर छोड़ कर
थामा सुमिरन तार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ मार्च ०५ को लिखी
१० मार्च २०१० को लोकार्पित
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