Monday, March 29, 2010

नयन श्याम के


अनुपम श्याम स्वरुप है
पर मन तहां ना जाय
वानर बन कूदे बहुत
बड़ी गुलाची खाय

मन सेवा में से दूर हो 
श्याम रूप बिसराय
माखन खाए मौज में
जब श्याम नाम गुन गाय

जिस मेले माया मिले
उस मेले रम जाए
मन प्यारा मोहन जहां
वहां पहुँच ना पाए

नयन श्याम के देख कर
सरपट दौड़ा जाऊं
जाय मिलूँ घनश्याम से
कहीं और ना पकड़ा जाऊं


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० मई २००५ को लिखी
२९ मार्च २०१० को लोकार्पित

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