Friday, March 19, 2010

98-सब ठाकुर का खेल है


सब ठाकुर का खेल है
भूले है यह बात
'मैं' से 'मैं' की दौड़ में
रमा रहूँ दिन रात


धूप गयी, बादल घने
छाया दिन अंधियार
नाम श्याम ले संग में
चलो करें उजियार

जो बीती, सो लौटती
मन में बारम्बार
श्याम गया सो आयेगा
करते रहो पुकार



अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
माय १, २००५ को लिखी पंक्तियाँ
मार्च १९, २०१० को लोकार्पित

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