बात करूं मैं कृष्ण की
या अपना संकट गान
समय अल्प है जान कर
लूं कान्हा की तान
मंगलकारी है नटवर
पर बहुत खिझाये मन को
छुप जाए छवि दिखला कर
ओझल कर अपनेपन को
कभी बुलाये प्रेम सरोवर
कभी कामना ताल
बूझ ना पाऊँ मैं सखी
कभी कृष्ण की चाल
जैसा भी है
ब्याह दिया मन
तोरे साथ कन्हाई,
गूँज रही है
पग पग पर अब
सुमिरन की शहनाई
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२१ अप्रैल २००५ को लिखी
१६ मार्च २०१० को संशोधन के साथ लोकार्पित
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