Sunday, March 7, 2010

86-हर दिशा प्रेमरस छलकाए



आनंद सुधारस बरसाते
कान्हा पथ पावन कर जाते

बंशी स्वर में अलोक नया
चलना रुकना सब एक हुआ

हर दिशा प्रेमरस छलकाए 
यह स्वर्णिम मौन स्वयम आये

मन कोयल, कूके कृष्ण कृष्ण
तन्मय है कण-कण, कृष्ण कृष्ण

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ मार्च ०५ को लिखी
७ मार्च २०१० को लोकार्पित

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