Monday, March 8, 2010

87- चल कान्हा के मिलन को


कृष्ण मधुर मुस्कान ले
हर लेते हर पीड़ा
जीवन बन जाए सरस
कृष्ण प्रेम की क्रीडा


कृष्ण सुनाये बांसुरी
कृष्ण जगाये राग
गिरिधर जल रोके कभी
कभी भगाए आग


रक्षक सो ही जानिए
जो बदले रूप हज़ार
कभी सागर, नदिया कभी
कभी नाव-पतवार


चल कान्हा के मिलन को
छोड़ें जगत बाज़ार
बिकें श्याम के नाम पे
प्यार लिए, दें प्यार


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ और १५ मार्च ०५ को लिखी
८ मार्च २०१० को लोकार्पित 

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