Thursday, March 4, 2010

83 - जिस पथ प्रेमी कृष्ण के


धर्म- कर्म का ज्ञान हो
भक्ति से श्रीमान,
मेरे पथ, पाथेय सब
यदुपति कृपानिधान

कृष्ण प्रेम की आस है
सतसंगत की नाव,
नाम बड़ा मीठा लगे
गुरु कृपा की छाँव

प्रेम श्याम का मिल गया
और ना दूजी चाह 
जिस पथ प्रेमी कृष्ण के
वो ही अपनी राह 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ फरवरी ०५ को लिखी
४ मार्च २०१० को लोकार्पित

1 comment:

kishore ghildiyal said...

bahut badiya likha hain aapne