कर्म मर्म तुम
सत्य धर्म तुम
केशव प्यारे
नित्य सहारे
आया हूँ फिर
द्वार तुम्हारे
यदुकुल नंदन
सब दुःख भंजन
हर दम तुम से
मिला रहे मन
अशोक व्यास
८ सितम्बर 2007 को लिखी ४ जून २०१० को लोकार्पित
आनंद श्याम
मकरंद श्याम
चल सुमिरन पथ
गोविन्द धाम
वह प्रेम मधुर
रस दिव्य मधुर
वह कृपामयी
बहुरूप मधुर
गोपाल मनोहर गिरिधारी
महिमा मोहन की है भारी
गायें श्रद्धा से नर-नारी
नित यमुनाजी की बलिहारी
१० सितम्बर २००७ को लिखी
४ जून २०१० को लोकार्पित
प्रेम प्रभु का पूंजी अपनी सच्ची है
बाकी जो है, दुनियादारी कच्ची है
११ सितम्बर २००७ को लिखी
४ जून २०१० को लोकार्पित
1 comment:
व्यास जी, आपकी कृष्ण-रस की भूख कभी न मिटने पाये....
शुभकामना सहित.......
चन्द्रमुखी चंचल चितचोरी, जय श्री राधा
सुघड़ सांवरा सूरत भोरी, जय श्री कृष्ण
श्यामा श्याम एक सी जोड़ी
श्री राधा कृष्णाय नमः ..
Post a Comment