मन अभी तक
रुका है यहीं तक
नहीं उगे हैं पर
नहीं मिला गगन घर
रुका है धरती पर
जड़ता अपना कर
मन उठो ना
मन उड़ो ना
मन छोडो चक्कर
आगे बढ़ो ना
मत बैठो सकुचा कर
आये नटवर नागर
हरते संताप सब
कृपारस बरसा कर
मन को नहला कर
कान्हा धुन गा कर
शरण आओ उसकी
जो है सुख सागर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२७ अक्टूबर २००७ को लिखी
१२ जून २०१० को लोकार्पित
1 comment:
u always touch $feed my soul...aatma trpt ho jaati hai aapki kavitayein pad kar...kanaha prem hai hi aisa...
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