Thursday, March 3, 2011

इतना अहसान निरंतर हो


कृपा तेरी पहचान सकूं
बस इतना ज्ञान निरंतर हो

कण कण में तेरा ध्यान चखूँ
बस इतना भान निरंतर हो

ओ करूणा वत्सल मनमोहन
मैं मूरख हूँ ,अज्ञानी हूँ

पर तेरा लीला गान चखूँ
इतना अहसान निरंतर हो


अशोक व्यास
१७ जून १९९७ को लिखी
३ मार्च २०११ को लोकार्पित    

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